चूड़ावत और शक्तावतो के शोर्य पर लिखी ऐसी कविता जो आपके रोंगटे खड़े कर देगी । उँटाला का युद्ध
चूड़ावत और शक्तावतो के शोर्य पर लिखी ऐसी कविता जो आपके रोंगटे खड़े कर देगी । उँटाला का युद्ध
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Lyrics - Vinit chauhan
दोहराता हूं सुनो रक्त से लिखी हुई कुर्बानी
जिसके कारण मिट्टी भी चंदन है राजस्थानी
जहां शीश लें निज करतल पर युद्ध किया करते हैं
और मान के धनी प्राणधन वार दिया करते हैं
राजस्थानी धरा शोर्य की कथा कहा करती है
पानी कम है मगर रक्त की नदी बहा करती है
जहां फूल सी कोमल नारी शोलो पर चलती है
और वंश की बेल नुकीले भालो पर पलती है
राणा पुत्र अमर सिंह भी मेवाड़ वंश गौरव थे
चूड़ावत सक्तावत मानो शत्रु को रोरव थे
किंतु हरावल दस्ते में केवल चूड़ावत लड़ते थे
शक्तावत ये देख देख कर मन ही मन कुढ़ते थे
यह विचार ही उन सबको बालू सिंह तक ले आया
उद्वेलित बालू भी झटपट राणा तक ढाया
बोले श्रीमन हम भी पौरुष तलवारे रखते हैं
फिर क्यों अग्रिम दस्ते में ये चूड़ावत लड़ते हैं
समरांगन के प्राणोंत्सव का ये क्रम रोका जाए
एक बार यह मौका शक्तावत को सौप जाए
चिंतित राणा ने इसमें देख भीषण अंदेशा
चूड़ावत सरदार जैत सिंह को भेजा संदशा
जैत सिंह ने राणा का प्रस्ताव सुना फिर बोले
जैसे पृथ्वी के कंपन को शेषनाग फन डोले
बोले श्रीमन आखिर तुमको क्यों आभास हुआ है
क्या चूड़ावत तलवारों से उठ विश्वास गया है
आप कहे तो बेरी दल से धरा पाट के रख दूं
एकलिंग की कसम चरण में शीश काट के रख दूं
शक्तावत प्रस्तावों ने सच हमको क्रुद्ध किया है
भूल गए घायल का कबंध ने पहरो युद्ध किया है
क्रोधित जैत सिंह आंखों में भर अंगार रहा था
जो मणि छिनने के भय से विषधर फुकार रहा था
राणा के समझाने पर भी दोनों खड़े हुए थे
विकट हरावल दस्ते खातिर ज़िद पर अड़े हुए थे
आखिर राणा को ही सूझी सहसा युक्ति नवेली
जिससे वे सुलझा सकते थे उलझी हुई पहेली
उँटाला का किला सब मुगल सैनिक कब्जाएँ हैं
इस कारण इस धरती पर घन काले घिर आए हैं
जो भी जाकर गढ़ में पहले प्रथम प्रवेश करेगा
वही हरावल दस्ते में भी आगे सदा लड़ेगा
अब क्या था दोनों को अग्रिम पीढ़ी का हक तय करना था
लड़ना क्या था उन्हें मौत को जाकर ही वरना था
पूरी रात युगल योद्धाओं को तलवारे भाई
और उधर चिंतित राणा को नींद नहीं थी आई
भोर हुई रणभेरी गूंजी और दुंदुभी बोली
मेवाड़ी सुत चले खेलने आज खून की होली
आज नहीं निर्णय होना था हार और शुभ जय का
आज सही अंतर होना था केवल विजय विजय का
मृत्यु दुल्हन की खातिर दो दूल्हे खड़े हुए थे
कौन वरेगा प्रथम इस जिद पर अड़े हुए थे
और इधर धरती पर अर्थी अग्रिम सजी पड़ी थी
किसको पहले वरु इसी उलझन में मृत्यु खड़ी थी
भिड़ने लगे काल से खुलकर वीर सुभट अभिमानी
लगी रक्त से खप्पर भरने काली और भवानी
दोनों योद्धा एक-एक कर अरिदल काट रहे थे
दोनों योद्धा दुश्मन से जो भूतल बांट रहे थे
सहसा बालू सिंह का हाथी मुख्य द्वार पर आया
भाले जैसी देख नुकीली किलो को चकराया
बार-बार टक्कर की खातिर जो आगे बढ़ता था
उतना ही वह कील भयंकर देख-देख कर हटता था
तो बालू सिंह हाथी पर से कूदा और दरवाजे पर आया
खड़ा हो गया किल पड़कर हाथी पर चिल्लाया
कहां महावत को हाथी को सीने पर आने दो
और सभी शक्तावत वीरों को अंदर जाने दो
कहा महावत ने स्वामी यह कैसे अनर्थ कर दूं
जिसका खाया अन्न उसी पर वरछी धर दूं
बालू बोला वीर व्यर्थ मत न समय गवाओ
समय आ गया मातृभूमि का बढ़कर कर्ज चुकाओ
विवश महावत ने हाथी तब आगे बढ़ा दिया था
बालू सिंह ने फिर सीना किलो पर अड़ा दिया था
हाथी ने मस्तक की टक्कर मारी जो प्रलयंकर
दरवाजे गिर गए किले के करते शोर भयंकर
गज मस्तक को भिगो रही थी सत् शोणित पिचकारी
और दिव्य आरती आज मृत्यु की गज ने स्वयं उतारी
हाथी शोणित की पावन गंगा में नहा चुका था
और बालू सिंह भी उधर रक्त के धारे बहा चुका था
उधर जैत सिंह भी रण में इतिहास नवल गढ़ता था
बना शत्रु को कालसर्प वह कंगूरे चढ़ता था
ज्यों ही वीर सीढ़ियों से चढ़ कंगूरे तक आया
गोली लगी वक्ष पर सहसा वीर धरा पर आया
वीर वह नहीं है जो मृत्यु को सामने देखकर
विजय की कल्पना छोड़ दे
वीर वह है जो मृत्यु से पंजा भिड़ा कर
अंतिम क्षण तक विजय के द्वारों को ठोकरो से खोल दे
सोचा अगर किले में पहले बालू कदम धरेगा
वही हरावल दस्ते में भी आगे सदा लड़ेगा
शीश कलम करके ही कोई कर्ज अदा करता है
और कलम के लिए विषय वो नए-नए धरता है
युद्ध देव को जब शोणित का पुण्य अर्ग जब चढ़ता है
तब जाकर ही सैनिक जीत के पथ पर कुछ बढ़ता है
तो लगी तनिक न देर उसे भीषण निर्णय लेने में
विजय सुनिश्चित लगी उसे निज शीश काट देने में
तो ऊँटाला का किला अजब यह घटना देख रहा था
एक वीर निज शीश काटकर अंदर फेंक रहा था
तोकाल ठीठक कर रुका स्वयं यह उसको दृश्य नया था
किसको लिखू माहान सोच में पड़ इतिहास गया था
नजरा न पुगी जठे गोलो पड्यो न आव
पागा सू पहल्या जठे शीश पड्यो गढ़ जाय
उद्वेलित बालू भी झटपट राणा तक ढाया
बोले श्रीमन हम भी पौरुष तलवारे रखते हैं
फिर क्यों अग्रिम दस्ते में ये चूड़ावत लड़ते हैं
समरांगन के प्राणोंत्सव का ये क्रम रोका जाए
एक बार यह मौका शक्तावत को सौप जाए
चिंतित राणा ने इसमें देख भीषण अंदेशा
चूड़ावत सरदार जैत सिंह को भेजा संदशा
जैत सिंह ने राणा का प्रस्ताव सुना फिर बोले
जैसे पृथ्वी के कंपन को शेषनाग फन डोले
बोले श्रीमन आखिर तुमको क्यों आभास हुआ है
क्या चूड़ावत तलवारों से उठ विश्वास गया है
आप कहे तो बेरी दल से धरा पाट के रख दूं
एकलिंग की कसम चरण में शीश काट के रख दूं
शक्तावत प्रस्तावों ने सच हमको क्रुद्ध किया है
भूल गए घायल का कबंध ने पहरो युद्ध किया है
क्रोधित जैत सिंह आंखों में भर अंगार रहा था
जो मणि छिनने के भय से विषधर फुकार रहा था
राणा के समझाने पर भी दोनों खड़े हुए थे
विकट हरावल दस्ते खातिर ज़िद पर अड़े हुए थे
आखिर राणा को ही सूझी सहसा युक्ति नवेली
जिससे वे सुलझा सकते थे उलझी हुई पहेली
उँटाला का किला सब मुगल सैनिक कब्जाएँ हैं
इस कारण इस धरती पर घन काले घिर आए हैं
जो भी जाकर गढ़ में पहले प्रथम प्रवेश करेगा
वही हरावल दस्ते में भी आगे सदा लड़ेगा
अब क्या था दोनों को अग्रिम पीढ़ी का हक तय करना था
लड़ना क्या था उन्हें मौत को जाकर ही वरना था
पूरी रात युगल योद्धाओं को तलवारे भाई
और उधर चिंतित राणा को नींद नहीं थी आई
भोर हुई रणभेरी गूंजी और दुंदुभी बोली
मेवाड़ी सुत चले खेलने आज खून की होली
आज नहीं निर्णय होना था हार और शुभ जय का
आज सही अंतर होना था केवल विजय विजय का
मृत्यु दुल्हन की खातिर दो दूल्हे खड़े हुए थे
कौन वरेगा प्रथम इस जिद पर अड़े हुए थे
और इधर धरती पर अर्थी अग्रिम सजी पड़ी थी
किसको पहले वरु इसी उलझन में मृत्यु खड़ी थी
भिड़ने लगे काल से खुलकर वीर सुभट अभिमानी
लगी रक्त से खप्पर भरने काली और भवानी
दोनों योद्धा एक-एक कर अरिदल काट रहे थे
दोनों योद्धा दुश्मन से जो भूतल बांट रहे थे
सहसा बालू सिंह का हाथी मुख्य द्वार पर आया
भाले जैसी देख नुकीली किलो को चकराया
बार-बार टक्कर की खातिर जो आगे बढ़ता था
उतना ही वह कील भयंकर देख-देख कर हटता था
तो बालू सिंह हाथी पर से कूदा और दरवाजे पर आया
खड़ा हो गया किल पड़कर हाथी पर चिल्लाया
कहां महावत को हाथी को सीने पर आने दो
और सभी शक्तावत वीरों को अंदर जाने दो
कहा महावत ने स्वामी यह कैसे अनर्थ कर दूं
जिसका खाया अन्न उसी पर वरछी धर दूं
बालू बोला वीर व्यर्थ मत न समय गवाओ
समय आ गया मातृभूमि का बढ़कर कर्ज चुकाओ
विवश महावत ने हाथी तब आगे बढ़ा दिया था
बालू सिंह ने फिर सीना किलो पर अड़ा दिया था
हाथी ने मस्तक की टक्कर मारी जो प्रलयंकर
दरवाजे गिर गए किले के करते शोर भयंकर
गज मस्तक को भिगो रही थी सत् शोणित पिचकारी
और दिव्य आरती आज मृत्यु की गज ने स्वयं उतारी
हाथी शोणित की पावन गंगा में नहा चुका था
और बालू सिंह भी उधर रक्त के धारे बहा चुका था
उधर जैत सिंह भी रण में इतिहास नवल गढ़ता था
बना शत्रु को कालसर्प वह कंगूरे चढ़ता था
ज्यों ही वीर सीढ़ियों से चढ़ कंगूरे तक आया
गोली लगी वक्ष पर सहसा वीर धरा पर आया
वीर वह नहीं है जो मृत्यु को सामने देखकर
विजय की कल्पना छोड़ दे
वीर वह है जो मृत्यु से पंजा भिड़ा कर
अंतिम क्षण तक विजय के द्वारों को ठोकरो से खोल दे
सोचा अगर किले में पहले बालू कदम धरेगा
वही हरावल दस्ते में भी आगे सदा लड़ेगा
शीश कलम करके ही कोई कर्ज अदा करता है
और कलम के लिए विषय वो नए-नए धरता है
युद्ध देव को जब शोणित का पुण्य अर्ग जब चढ़ता है
तब जाकर ही सैनिक जीत के पथ पर कुछ बढ़ता है
तो लगी तनिक न देर उसे भीषण निर्णय लेने में
विजय सुनिश्चित लगी उसे निज शीश काट देने में
तो ऊँटाला का किला अजब यह घटना देख रहा था
एक वीर निज शीश काटकर अंदर फेंक रहा था
तोकाल ठीठक कर रुका स्वयं यह उसको दृश्य नया था
किसको लिखू माहान सोच में पड़ इतिहास गया था
नजरा न पुगी जठे गोलो पड्यो न आव
पागा सू पहल्या जठे शीश पड्यो गढ़ जाय
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